लखनऊ/13-09-16 Written by Socio Political News Desk
यूपी के सूचना आयोग में बीते दिनों एक समाचार वेबसाइट द्वारा किये
गए स्टिंग ऑपरेशन के सार्वजनिक होने के बाद यूपी के सूचना आयुक्तों की मुश्किलें खासी
बढ़तीं नज़र आ रही हैं. यूपी के आरटीआई कार्यकर्ता तो लम्बे समय से सूचना आयुक्तों
पर घूस खाकर सुनवाई करने का आरोप लगाते हुए सुनवाइयों की ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग
की मांग कर ही रहे थे कि इसी बीच एक समाचार वेबसाइट द्वारा यूपी के सूचना आयोग में
बीते दिनों किये गए स्टिंग ऑपरेशन में सूचना आयुक्तों द्वारा ‘अंडर द टेबल खेल”’
करने की बात सामने आने से एक्टिविस्टों को सूचना आयुक्तों को निशाने पर लेने का एक
और हथियार मिल गया है. एक्टिविस्टों ने मौके का फायदा उठाते हुए बिना कोई देरी
किये इस स्टिंग पर आधारित समाचार के साथ अपना शिकायती पत्र भारत के उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश और सूबे
के राज्यपाल को लिखकर आरटीआई एक्ट की धारा 17 के अंतर्गत जांच कराने और दोषी सूचना
आयुक्तों को पद से हटाने की मांग कर दी है.
यूपी में लम्बे समय से आरटीआई कार्यकर्ताओं का नेतृत्व कर रही लखनऊ की फायरब्रांड समाजसेविका उर्वशी ने बताया कि उन्होंने आज उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश और सूबे के राज्यपाल को न्यूज़ वेबसाइट की पूरी खबर भेजते हुए “उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग में व्याप्त भ्रष्टाचार,अनियमितताओं,अधिनियम विरोधी कार्यप्रणाली और आरटीआई आवेदकों के उत्पीडन की जांच कराकर दोषियों को दण्डित कराने की मांग कर दी है.
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश और सूबे के राज्यपाल को लिखे पत्र में उर्वशी ने स्थिति को गंभीर बताते हुए लिखा है “ऐसी गंभीर स्थिति में आप इस समाचार में वर्णित अति गंभीर समस्याओं पर भ्रष्ट सूचना आयुक्तों आदि के खिलाफ कार्यवाही करने के नैतिक और विधिक उत्तरदायित्व से मुंह नहीं मोड़ सकते है” l और “आरटीआई एक्ट को पंगु बनाने वाले और आयोग में अंडर द टेबल का खेल” चलाने वाले सूचना आयुक्तों को दण्डित करने की मांग की है.
uउर्वशी ने बताया कि इस वेबसाइट ने
“उत्तर प्रदेश में आरटीआई एक्ट
अपना मूल उद्देश्य पूर्ण रूप से खो चूका है, प्रदेश में अब यह एक्ट सूचना
आयुक्तों की कमाई का साधन मात्र बनकर रह गया है”, “सरकारों ने सूचना आयुक्त पदों पर
सरकार के हितेषी लोगो को बैठाना शुरू कर दिया और परिणामत: सरकार के हितेषी सूचना
आयुक्तों ने आरटीआई एक्ट का मूल उद्देश्य ही समाप्त कर दिया। उत्तर प्रदेश में
आरटीआई एक्ट पर सबसे बुरा असर हुआ। उत्तर प्रदेश में सूचना आयुक्त हीं भ्रष्ट
सरकारी अधिकारयों के प्रतिनिधि बन बैठे” , “आयुक्तों की कार्यप्रणाली ऐसी की आवेदक
खुद ही हताश व निराश होकर अपने घर बैठ जाए। आयोग में आना ही छोड़ दे ताकि केस को
समाप्त किया जा सके”, “अंडर द टेबल के खेल को पुख्ता
करते केस”, “भ्रष्ट जनसूचना अधिकारीयों की आयोग में सेटिंग का उदाहरण”, “उत्तर प्रदेश में आरटीआई मात्र
छलावा”,
“आर्थिक रूप से कमजोर आवेदक के बस की बात नहीं आयोग से सूचना
प्राप्त कर पाना”, “नहीं आते आवेदक तो जनसूचना अधिकारीयों के पक्ष दे दिया जाता है
फैसला”
जैसी रिपोर्ट लिखकर यूपी के आरटीआई कार्यकर्ताओं द्वारा सूचना आयुक्तों पर लम्बे समय
से लगाए जा रहे आरोपों की पुष्टि कर दी है और इसीलिए अब उन्होंने इस समाचार के साथ
एक बार फिर यूपी के भ्रष्ट आयुक्तों पर हमला बोल दिया है.
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